Indian railways : रेल गाड़ी में सफर के दौरान अक्सर पैसेंजर को रेलवे से जुड़ी नियम और पुरानी बाते जानने को मिलती रहती है। जहाँ अकसर देखते होंगे जब भी रेलगाड़ी स्टेशन पर आती है। तब आप देखते होंगे रेलवेकर्मी प्लेटफॉर्म पर खड़ा होकर रेल के ड्राइवर को लोहे का छल्ला देता है। जहाँ इसे देखने के बाद कई लोगो के जहन में आता होगा कि आखिर ये क्या चीज है और किस काम आती है?
आपकी जानकारी के लिए बता दे कि यह टोकन एक्सचेंज सिस्टम है। हालांकि, इसका चलन अब धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है, परन्तु देश के कई हिस्सों में आज भी इसका उपयोग किया जाता है। ट्रेन के ड्राइवर को दिए जाने वाला यह लोहे का छल्ला, टोकन एक्सचेंज सिस्टम कहलाता है। आगे हम आपको इस बारे में विस्तार से बताएंगे।
अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही टोकन एक्सचेंज सिस्टम
आपकी जानकारी के लिए बता दे कि टोकन एक्सचेंज सिस्टम का उपयोग ट्रेनों के सुरक्षित और बेहतर परिचालन के लिए किया जाता है। यह तकनीक अंग्रेजों के जमाने से चलती आ रही है। आज से पहले ट्रेन ट्रैक सर्किट नहीं हुआ करते थे। अब ऐसे में टोकन एक्सचेंज सिस्टम के द्वारा ही रेलगाड़ी सुरक्षित तरीके से सफर तय कर रेलवे स्टेशन पर अपनी यात्रियों को लेते हुए पहुँचती थी।
आज से पचास -साठ वर्ष पूर्व रेलवे के पास वर्तमान समय की तरह मॉर्डन टेक्नोलॉजी नहीं थी। इसलिए कई तरीकों का उपयोग कर रेल सुरक्षित स्टेशन पर पहुँचती थी। शुरुआत में केवल सिंगल और छोटा ट्रैक हुआ करता था। जहाँ दोनों तरफ से आने -जाने वाली रेलगाड़ियों को एक ही ट्रैक पर चलाया जाता था। ऐसी स्थिति में ट्रेनों की टक्कर की घटनाओं को रोकने के लिए टोकन एक्सचेंज सिस्टम का उपयोग किया जाता था।
जाने क्या है टोकन एक्सचेंज सिस्टम
टोकन एक्सचेंज सिस्टम एक स्टील का छल्ला होता है। जिसे स्टेशन मास्टर, लोको पायलट को देता है। यह टोकन एक्सचेंज सिस्टम ट्रैन ड्राइवर को इस लिए दिया जाता, जिसमे बताया जाता कि अगले रेलवे स्टेशन तक लाइन साफ है और आप आगे बढ़ सकते हैं। वही लोको पायलट नेक्स्ट रेलवे स्टेशन पर पहुंचने पर इस टोकन वहां जमा कर देता है और वहां से फिर दूसरा टोकन एक्सचेंज सिस्टम लेकर आगे बढ़ता है। जिससे उसे फिर मालूम चल जाता की आगे लाइन साफ़ है। वही सिंगल लाइन के लिए आमतौर पर एक टोकन का इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि डबल लाइन की तुलना में सिगनलर या ट्रेन क्रू द्वारा गलती किए जाने की स्थिति में टकराव का ज्यादा खतरा होता है।
इस स्टील रिंग में एक बॉल होता है, जिसे रेलवे की भाषा में टेबलेट कहा जाता है। इस बॉल को स्टेशन पर लगे ‘नेल बॉल मशीन’ में डाला जाता है। हालांकि, अब टोकन एक्सचेंज सिस्टम के स्थान पर ट्रैक सर्किट का उपयोग किया जा रहा है।
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