Eco-Friendly Home: अगर आप देश के अलग-अलग शहरों की ओर देखोगे तो आपको हर जगह लगभग एक जैसी ही इमारतें नजर आएंगी। इसके साथ ही इन इमारतों में निर्माण होने वाला मैटेरियल भी लगभग एक जैसी ही होती है। इसी बीच सोशल मीडिया पर इन दिनों बेहद ही अनोखा घर वायरल हो रहा हैं.
एसी और पंखे की भी नहीं है जरूरत
आज हम आपको इस आर्टिकल के जरिए एक ऐसे घर के बारे में बताएंगे, जिसे राजस्थान के डूंगरपुर में रहने वाले सिविल इंजीनियर आशीष पंडा और उनकी पत्नी मधुलिका द्वारा बनाया गया है। पेशे से सॉफ्टवेयर डेवलपर रहने वाली मधुलिका समाज सेवा का काम भी करती हैं। उनके इस घर में नींव से लेकर बाहर – अंदर तक सब कुछ पर्यावरण के अनुकूल बनाया गया है। उनका यह घर इन दिनों खास चर्चाओं में बना हुआ है। इस घर को बनाने में किसी प्रकार की सीमेंट और ईंट का आदि का इस्तेमाल नहीं किया गया है। इसके साथ ही गर्मी के दिनों में भी इस घर में एसी और पंखे की आवश्यकता नहीं पड़ती।
ईंट और सीमेंट का इस्तेमाल किए बिना बनाया अनोखा घर
प्रत्येक इंसान की इच्छा होती है कि उसका एक अपना घर हो ताकि वह अपने पूरे परिवार के साथ हंसी-खुशी अपने घर में रह सके। इसी बीच राजस्थान के डूंगरपुर मैं रहने वाले इस कपल द्वारा अपना एक सपनों का महल तैयार किया गया है, जिसे बनाने में उन्होंने पर्यावरण के संतुलन का विशेष ध्यान रखा है। उनके इस घर में किसी प्रकार की ईंट और सीमेंट का इस्तेमाल तक नहीं किया गया है, बल्कि यह घर पूर्णतया वातावरण नुकूलित है. जनजाति क्षेत्र में इससे पहले ऐसा घर शायद कभी किसी ने नहीं बनाया होगा और ना ही देखा होगा, जहां प्रत्येक चीज को रिसाइकल कर फिर से प्रयोग किया गया है।
आशीष और मधुलिका दोनों ने की इंजीनियरिंग की पढ़ाई
सिविल इंजीनियर आशीष पंडा जोकि उड़ीसा में पले बड़े हैं, उन्होंने बताया कि जब तक उन्होंने अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी की, तब तक उनका जीवन मद्रास में ही बीता। इसके बाद बिट्स पिलानी से वह सिविल इंजीनियर करने में कामयाब रहे। इसके साथ ही उन्होंने देश के अलग-अलग हिस्सों में काम भी किया। वही विजयवाड़ा की रहने वाली मधुलिका जोकि 41 वर्ष की है उन्होंने भी बिट्स पिलानी से ही अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की, इसके बाद मास्टर्स की डिग्री हासिल करने के लिए वह अमेरिका चली गई जहां उन्होंने एक साल काम भी किया।
कॉलेज के दिनों से ही राजस्थान लौटने का किया था फैसला
मधुलिका ने बताया कि भले ही मैं और आशीष एक साथ नहीं रह सके, लेकिन अलग-अलग जगहों पर रहने के बाद भी हमने कॉलेज के समय से ही यह निश्चय कर लिया था कि हम अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद राजस्थान ही लौटेंगे, क्योंकि कॉलेज के समय से ही जहां मुझे सामाजिक मुद्दोंकी तरफ अधिक रुचि थी वही आशीष का प्राकृतिक संसाधनों की तरफ खास झुकाव था।
देश-विदेश में कई जगह पर रहने के बाद यह दोनों साल 2008 में राजस्थान लौट आए। आशीष ने बताया कि यह बात तो हम दोनों पहले ही फाइनल कर चुके थे, कि हम किसी बड़े मेट्रो शहर में नहीं रहेंगे। हमें हमेशा से ही प्रकृति के करीब रहने का शौक था, जिसके चलते हमने कुछ समय के लिए अलग-अलग गांव में रहकर भी देखा। इसके साथ ही मधुलिका ने बताया कि साल 2010 में डूंगरपुर में उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया। इसके बाद से फिर उन्होंने वही अपना जीवन बिताने का फैसला कर लिया।
बिना ईट और सीमेंट के भी है टिकाऊ
डूंगरपुर में बसने के बाद आशीष और मधुलिका ने डूंगरपुर के उदयपुर में एक जमीन खरीदी और अपना घर बनाने का काम शुरू कर दिया, जिसे बनाने में उन्होंने सभी लोकल सामान का इस्तेमाल किया है। जिसमें बलवाड़ा के पत्थर और पत्तियां गूगरा के पत्थर और चूने का इस्तेमाल किया गया है। घर की सभी दीवारों को पत्थरों से बनाया गया है इसके साथ ही इस घर की चिनाई, प्लास्टर और छत की मिट्टी तक में चूने का इसेतमाल किया गया है। गर्मी के दिनों में भी उनके इस सपनों के घर में एसी और पंखे तक की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती।
इसके अतिरिक्त उनके इस घर की छतों और सीढ़ियों का निर्माण करने के लिए पटृटियों का प्रयोग किया गया है। इस घर को बनाने में सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है, कि इसमें किसी भी प्रकार की सीमेंट और ईंट का इस्तेमाल नहीं किया गया है। आशीष और मधुलिका द्वारा बताया गया कि राजस्थान में जितने भी पुराने महल, हवेली और घर बने हुए हैं। सभी घरों में पत्थर चूना और मिट्टी का प्रयोग किया गया है। वहां किसी भी घर की छतों में सीमेंट और स्टील का प्रयोग नहीं किया गया है। इसके बावजूद भी उनके यह आशियाने बरसों से सलामत बने हुए हैं।