दतिया पैलेस: एक रात बिताने के लिए बनाया था ये 400 कमरों का महल.. जानें क्यों उस रात के बाद वीरान को गया महल

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दतिया पैलेस : देश में ऐसे कई किले और महल हैं जो कई शताब्दियों पहले बनाए गए थे और अब अपनी खूबसूरती के कारण लोगों के बीच काफी फेमस हैं. लेकिन आज इस लेख में हम मध्यप्रदेश के दतिया नामक एक छोटे से शहर में बने उस महल के बारे में जानेगे. जोकि पूरी तरह से तैयार होने के बाद पहली रात से वीरान पड़ा हैं.

दतिया पैलेस की कहानी

दतिया पैलेस
दतिया पैलेस

दरअसल सिंधिया द्वारा ग्वालियर और मध्य प्रदेश के बड़े हिस्से पर शासन करने से बहुत पहले यह क्षेत्र मुगल साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था. लेकिन जब साम्राज्य अपने चरम पर था, तब सम्राट अकबर बूढ़े हो रहे थे और उनका अपने सबसे बड़े बेटे युवराज सलीम के साथ मतभेद शुरू हो चूका था.

फिर एक समय ऐसा आया जब सलीम ने अपने पिता सम्राट अकबर के खिलाफ विद्रोह किया और तत्कालीन इलाहाबाद में अदालत की स्थापना की. उन्हें वापस लौटने के लिए मनाने के लिए अकबर ने अपने प्रधानमंत्री अबुल फज़ल को दिल्ली लौटने के लिए मनाने के लिए भेजा.

बता दे अबुल फज़ल को सलीम के सिंहासन पर बैठने के विरोधी के रूप में जाना जाता था. इसलिए ये भी कहा जाता हैं कि वह इस मौके इस इस्तेमाल राजकुमार की हत्या करने के लिए करना चाहता था. ऐसे में जब सलीम ने अबुल फज़ल के इलाहाबाद मार्च के बारे में सुना तो उसे खतरें का एहसास हो गया. जब तक कि बीर सिंह देव साम्राज्य के वजीर को मारने का ऑफर लेकर उसके पास नहीं आया था.

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दतिया पैलेस
दतिया पैलेस

निश्चित रूप से बीर सिंह देव क्षेत्र की राजनीति में एक प्रमुख खिलाड़ी नहीं थे. लेकिन ये भी कहा जाता हैं कि वह कोई मामूली खिलाड़ी भी नहीं था. बीर सिंह देव एक मात्र जमींदार थे, लेकिन सलीम की तरह वह सम्राट के प्रशंसक नहीं हुआ करते थे, उन्होंने अकबर के खिलाफ कई विद्रोहों का नेतृत्व किया था.

बीर सिंह देव का करों का भुगतान करने से इंकार करना एक छोटी-मोती बात है लेकिन उसके वजीर की हत्या करना बिल्कुल दूसरी बात है. दरअसल बीर सिंह देव को इतना उतावलापन दिखाने के लिए किस बात ने प्रेरित किया यह आज भी एक रहस्य बना हुआ है लेकिन कहानी के एक सीजन से पता चलता है कि यह सलीम ही थे जो मदद के लिए उनके पास सबसे पहले पहुंचे थे. अगर सच में ऐसा होता, तो बीर सिंह देव के पास एक बेहद मुश्किल विकल्प होता कि वह साम्राज्य का समर्थन करें और भविष्य के सम्राट का समर्थन खो दें या एक भगोड़े राजकुमार का समर्थन करें और भूमि के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति को दुश्मन बना दें.

किसी भी स्थिति में बीर सिंह देव इस साहसी मिशन के साथ आगे बढ़े. उन्होंने अबुल फज़ल को घेर लिया और उसकी हत्या कर दी. बताया जाता हैं कि उन्होंने सलीम को एक समय के शक्तिशाली मुगल दरबारी का कटा हुआ सिर भेंट किया था. जबकि राजकुमार उनका आभारी था, यहां तक ​​कि दोस्ती का हाथ भी दे रहा था. जिसके बाद  बीर सिंह देव आधिकारिक तौर पर सम्राट अकबर के निशाने पर आ गए.

अपने पसंदीदा दरबारियों में से एक की मौत से गुस्सा होकर, अकबर ने उसकी मौत का बदला लेने के लिए कई अभियान चलाए. सलीम युवराज बनने से चूक गया था. ऐसे में उसने बीर सिंह को ऐसी  जानकारी देना जारी रखा जिससे बीर सिंह को लगातार हमलों से बचने में मदद मिली.

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दतिया पैलेस
दतिया पैलेस

बीर सिंह देव ने अगले कुछ वर्ष भागते-भागते बिताए और हर बार अपने हुए हमलों से खुद को बचा लिया. लेकिन जब ऐसा लगा कि वह हमेशा के लिए अपराधी बन जाएगा, तो अकबर का निधन हो गया. एक दिलचस्प बात ये हैं कि जब ये सब हुआ तब तक सलीम ने अपने पिता के साथ समझौता कर लिया था और उनकी मृत्यु के तुरंत बाद जहाँगीर को अपना शाही नाम मानकर गद्दी पर बैठा.

सम्राट बनने के तुरंत बाद जहाँगीर ने उस व्यक्ति पर प्रहार करना बंद कर दिया जिसने एक बार उसकी जान बचाई थी और उसे ओरछा के सिंहासन पर बैठाया.

वर्षों बाद जब जहाँगीर ने अपने पुराने मित्र बीर सिंह देव से मिलने के इरादे की घोषणा की, तो उसने राज्य में 52 इमारतों का निर्माण शुरू कराया. उनमें से एक दतिया का महल था जो सम्राट के लिए एक पड़ाव के रूप में काम करेगा.

दतिया पैलेस को बीर सिंह देव पैलेस और सतखंडा पैलेस सहित कई नामों से जाना जाता है. जहाँगीर की योजना के अनुसार, सम्राट महल में पहुंचे और ओरछा जाने से पहले पूरी एक रात वहीं बिताई. चूँकि यह एक गिफ्ट था, न तो बीर सिंह देव और न ही उनके परिवार ने कभी भी महल का इस्तेमाल अपने निजी हितों  के लिए किया और इसलिए दतिया पैलेस 400 से अधिक वर्षों से वीरान पड़ा हैं.

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